अंतस में अकुलाहट
न मन की कोई अभिलाषा
शून्य व्यापत हिरदय की गहराई में
गूढ़ हुई जीवन की परिभाषा
धवनि निनाद की नगरी में
मन अक्सर है मंडराता
काले बदल के पीछे , क्या है छुपा
कभी -कभी जानने की होती जिज्ञासा
गुजरू जब भी ,उस पथ से
कर्ण-प्रिय संगीत ,मन में रच बस जाता
तीव्र किरण पुंज की रोशनी में
भटक गया हूँ ,सोचता हूँ
फिर कब घर लौटना होगा दोबारा
----आर.विवेक
Friday, December 31, 2010
अनाथ
खुश हूँ कि बसंत -दर-बसंत
ओझल हुआ इन आँखों से
सड़क जिंदगी बनी
आसमां बना छत
लिपटा रहा तन,वक्त के चादर से
परिस्थिति क्या रही होगी ?
जब उठा होगा,हाथ मासूम के सर से
न कोई नाम,न कोई मजहब
बस जुड़ा था,एक शब्द "अनाथ"
मासूम के दमन से
कभी -कभी संवेदना फूटती ,इस जग से
पर अगले ही पल,रोष परिलक्षित होता
इन्ही लोगो के मन से
क्यों नहीं जोड़ा खुदा ,इस मासूम का
नाता किसी घर से
समय के पालने में खेलकर बड़ा हुआ
तो सोचता हूँ
क्या होता है,नया साल और जन्मदिन
क्यों मानते हैं,लोग इतनी ख़ुशी
ख्याल आता है खुद के बारे में
तो मन मिसोस कर कह देता है
खुदा ने ख़ुशी कि डोर काट दी ,
जनम ही से
---आर.विवेक
ओझल हुआ इन आँखों से
सड़क जिंदगी बनी
आसमां बना छत
लिपटा रहा तन,वक्त के चादर से
परिस्थिति क्या रही होगी ?
जब उठा होगा,हाथ मासूम के सर से
न कोई नाम,न कोई मजहब
बस जुड़ा था,एक शब्द "अनाथ"
मासूम के दमन से
कभी -कभी संवेदना फूटती ,इस जग से
पर अगले ही पल,रोष परिलक्षित होता
इन्ही लोगो के मन से
क्यों नहीं जोड़ा खुदा ,इस मासूम का
नाता किसी घर से
समय के पालने में खेलकर बड़ा हुआ
तो सोचता हूँ
क्या होता है,नया साल और जन्मदिन
क्यों मानते हैं,लोग इतनी ख़ुशी
ख्याल आता है खुद के बारे में
तो मन मिसोस कर कह देता है
खुदा ने ख़ुशी कि डोर काट दी ,
जनम ही से
---आर.विवेक
Saturday, December 11, 2010
घरौंदा
मिटटी की सोंधली खुशबू
नन्हे हाथो का कमाल
त्यौहार की ख़ुशी
उमड़ा मन मस्तिष्क
में विचार
बड़ो ने अपने लिए
जो बना रखा है आशियाना
त्यौहार आने पर ,लिपा-पोती
कर सजा रहे है
हमारे साजो-सामान घर के बाहर
धुप -शीत khअ रहे है
अब इन घरो में ,कितना दिनों तक
रहेगा हम सब का ठिकाना
बच्चो की टोली से कहने लगे
देखो दोस्तों हम-सब को ये बच्चे
समझते है
हमारे मन की गहराई ko
क्यों नहीं समझते है
हम सब बनायेगे ,अपने घर के पास
घर का छोटा सा ही प्रतिरूप
प्रकृति ने हम सब को
संशाधन दिए है खूब
सभी बच्चो ने बना डाला अपना आशियाना
यह देख घर के लोग ,होने लगे निहाल
कहने लगे ,देखो बच्चा हो रहा है बड़ा
मट्टी बटोरकर ,बना डाला है घरौंदा
कद्र करो इनके जज्बातों का
नहीं तो घर में ही उठ जाएगी आंधी
बच्चो ने दिखा दिया है ,ये हो सकते है बागी
-----आर.विवेक
ब्लॉगर नाम -सफ़र-विवेक.ब्लागस्पाट.कॉम
इ_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com">_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
नन्हे हाथो का कमाल
त्यौहार की ख़ुशी
उमड़ा मन मस्तिष्क
में विचार
बड़ो ने अपने लिए
जो बना रखा है आशियाना
त्यौहार आने पर ,लिपा-पोती
कर सजा रहे है
हमारे साजो-सामान घर के बाहर
धुप -शीत khअ रहे है
अब इन घरो में ,कितना दिनों तक
रहेगा हम सब का ठिकाना
बच्चो की टोली से कहने लगे
देखो दोस्तों हम-सब को ये बच्चे
समझते है
हमारे मन की गहराई ko
क्यों नहीं समझते है
हम सब बनायेगे ,अपने घर के पास
घर का छोटा सा ही प्रतिरूप
प्रकृति ने हम सब को
संशाधन दिए है खूब
सभी बच्चो ने बना डाला अपना आशियाना
यह देख घर के लोग ,होने लगे निहाल
कहने लगे ,देखो बच्चा हो रहा है बड़ा
मट्टी बटोरकर ,बना डाला है घरौंदा
कद्र करो इनके जज्बातों का
नहीं तो घर में ही उठ जाएगी आंधी
बच्चो ने दिखा दिया है ,ये हो सकते है बागी
-----आर.विवेक
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Friday, December 10, 2010
भ्रष्टाचार की ओट
भ्रष्ट्राचार इतना बलवान हो गया
हर तंत्र में यह भगवन हो गया
इसके प्रति श्रद्धा रखना अनिवार्य हो गया
राम संग जैसे प्रिय भक्त हनुमान हो गया
रिश्वत की आड़ में यह जवान हो गया
धन की लालसा में ,इन्सान हैवान हो गया
रिश्वत से हर काम का अनुबंध हो गया
यह देख सचाई सतयुग के दामन में सो गया
एक दिन भ्रमण करते हुए ,परभू का नारायण से भेट हो गया
पूछा प्रभु ,ऋषि -मुनियों के देश में यह क्या हो रहा
बोले प्रभु ,देखो नारायण ,कलयुग का प्रकोप छा रहा
ऐसा तो युग युगांतर से होता आ रहा
नारायण बोले ,प्रभु मै समझ गया
अनुमति दे अब जाऊ चला ,देश तेरा हो भला
-आर.विवेक
ब्लॉगर नाम -सफ़र-विवेक.ब्लागस्पाट.कॉम
इ-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com" href="mailto:-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
हर तंत्र में यह भगवन हो गया
इसके प्रति श्रद्धा रखना अनिवार्य हो गया
राम संग जैसे प्रिय भक्त हनुमान हो गया
रिश्वत की आड़ में यह जवान हो गया
धन की लालसा में ,इन्सान हैवान हो गया
रिश्वत से हर काम का अनुबंध हो गया
यह देख सचाई सतयुग के दामन में सो गया
एक दिन भ्रमण करते हुए ,परभू का नारायण से भेट हो गया
पूछा प्रभु ,ऋषि -मुनियों के देश में यह क्या हो रहा
बोले प्रभु ,देखो नारायण ,कलयुग का प्रकोप छा रहा
ऐसा तो युग युगांतर से होता आ रहा
नारायण बोले ,प्रभु मै समझ गया
अनुमति दे अब जाऊ चला ,देश तेरा हो भला
-आर.विवेक
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Tuesday, December 7, 2010
मौकापरस्त
आज सुबह सड़क पर
शराब की बोतल मिली
कहने लगी,मयखाने की
शोभा बढाती थी ,मै कभी
एक मयकद को सुकून -इ-मंजर
पहुचाया अभी अभी
मै खाली हुई , तो मुझको फेक दिया
अब मै हु यहाँ पड़ी
लाखो चाहने वाले थे
जब तक थी मै भरी
लव से लगता था कोई
तो किसी के हिरदय को
ठंडक पहुचती थी मै कभी
आज मै भटक रही हु
कभी इस गली ,तो कभी उस गली
आज तेरे कदमो तले ,आकर हु पड़ी
आज सुबह सड़क
पर शराब की बोतल मिली
- --आर.विवेक
ब्लॉगर नाम -सफ़र-विवेक.ब्लागस्पाट.कॉम
-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
शराब की बोतल मिली
कहने लगी,मयखाने की
शोभा बढाती थी ,मै कभी
एक मयकद को सुकून -इ-मंजर
पहुचाया अभी अभी
मै खाली हुई , तो मुझको फेक दिया
अब मै हु यहाँ पड़ी
लाखो चाहने वाले थे
जब तक थी मै भरी
लव से लगता था कोई
तो किसी के हिरदय को
ठंडक पहुचती थी मै कभी
आज मै भटक रही हु
कभी इस गली ,तो कभी उस गली
आज तेरे कदमो तले ,आकर हु पड़ी
आज सुबह सड़क
पर शराब की बोतल मिली
- --आर.विवेक
ब्लॉगर नाम -सफ़र-विवेक.ब्लागस्पाट.कॉम
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Monday, November 29, 2010
वादा
सोने से पहले
बहुत दूर जाना है
किसी से किया है वादा
उसको निभाना है
बंद आँखों का क्या है भरोसा
वो खुले की न खुले
खुली आँखों से ही
मंजिल तक जाना है
मुझसे न हो ,किसी को कोई इतफाक
तो कोई बात नहीं
पर एतेफाकन कही, वो मिले
और तोहमत न लगाये
नाकमे वफ़ा का
यही सोच ,आखिरी सास तक चलते जाना है
सोने से पहले
बहुत दूर जाना है
------ आर .विवेक
इ_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com">_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
बहुत दूर जाना है
किसी से किया है वादा
उसको निभाना है
बंद आँखों का क्या है भरोसा
वो खुले की न खुले
खुली आँखों से ही
मंजिल तक जाना है
मुझसे न हो ,किसी को कोई इतफाक
तो कोई बात नहीं
पर एतेफाकन कही, वो मिले
और तोहमत न लगाये
नाकमे वफ़ा का
यही सोच ,आखिरी सास तक चलते जाना है
सोने से पहले
बहुत दूर जाना है
------ आर .विवेक
इ_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com">_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
Tuesday, November 9, 2010
कब कहा क्या हो जाय
कब कहा क्या हो जाय
न तुझको पता ,न मुझको पता
जो दे बता ,वह रब हो जाय
फिर भी,सपना लिए आखो में बढ़ते है लोग
कब कहा ये सच हो जाय
ओठो पे हसी या आखे नाम हो जाय
हो उदास ,तो देख लो जहा
कही कुछ ऐसा दिखे,
जो जिन्दगी जीने का मकसद बन जाय
कही तेरे ,मेरे मन की कुछ न हो
सब रब के मन की हो जाय
सफरे जिन्दगी में,सभाल सभाल के रखो कदम
न जाने कौन सा कदम आखिरी हो जाय
कब कहा क्या हो जाय
____आर.विवेक
_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
न तुझको पता ,न मुझको पता
जो दे बता ,वह रब हो जाय
फिर भी,सपना लिए आखो में बढ़ते है लोग
कब कहा ये सच हो जाय
ओठो पे हसी या आखे नाम हो जाय
हो उदास ,तो देख लो जहा
कही कुछ ऐसा दिखे,
जो जिन्दगी जीने का मकसद बन जाय
कही तेरे ,मेरे मन की कुछ न हो
सब रब के मन की हो जाय
सफरे जिन्दगी में,सभाल सभाल के रखो कदम
न जाने कौन सा कदम आखिरी हो जाय
कब कहा क्या हो जाय
____आर.विवेक
_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
महफ़िल-ऐ-शायरी
१) पहले मैं उनकी नजरो में कुछ था
अब कुछ भी नहीं
दरमया फासला बस इतना हुआ
पहले मैं कुछ था ,अब कुछ भी नहीं
२)हर एक ज़ख़्म मंजर-ऐ-दास्ता हैं
यह मत पूछ,दिल -ऐ-दर्द का ज़ख़्म कौन सा है
३) दिल से दिल का रिश्ता ,खौफ से मिटता नहीं
चाहे जितना ,दिल की दहलीज पे लगा लो ,तलवार का पहरा
४)मर्ज ये नहीं की मरीज है वो
मर्ज ये है की रकीब है वो
हसरत भी उसकी किसी से कम नहीं
पर हाथो में इमानदारी की जंजीर है जो
५)जानकर भी लोग अनजान बनते है
अपने ही बच्चो में हो,गर लड़की
तो उसकी जान पर बनते है
उन्हें खौफ भी नहीं इतना
रब के घर उनका अंजाम क्या होगा
६)क्यों कोई तेरे पास आएगा
सोच क्या तेरे साथ जायेगा
es मतलब परस्त दुनिया में
कोई तो होगा सच्चा
उसी के संग रह ,वाही तेरे साथ जायेगा
--आर.वीवेक
-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
अब कुछ भी नहीं
दरमया फासला बस इतना हुआ
पहले मैं कुछ था ,अब कुछ भी नहीं
२)हर एक ज़ख़्म मंजर-ऐ-दास्ता हैं
यह मत पूछ,दिल -ऐ-दर्द का ज़ख़्म कौन सा है
३) दिल से दिल का रिश्ता ,खौफ से मिटता नहीं
चाहे जितना ,दिल की दहलीज पे लगा लो ,तलवार का पहरा
४)मर्ज ये नहीं की मरीज है वो
मर्ज ये है की रकीब है वो
हसरत भी उसकी किसी से कम नहीं
पर हाथो में इमानदारी की जंजीर है जो
५)जानकर भी लोग अनजान बनते है
अपने ही बच्चो में हो,गर लड़की
तो उसकी जान पर बनते है
उन्हें खौफ भी नहीं इतना
रब के घर उनका अंजाम क्या होगा
६)क्यों कोई तेरे पास आएगा
सोच क्या तेरे साथ जायेगा
es मतलब परस्त दुनिया में
कोई तो होगा सच्चा
उसी के संग रह ,वाही तेरे साथ जायेगा
--आर.वीवेक
-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
Sunday, October 10, 2010
दो फूंक
दो फूंक पी लें
कुछ पल सुख
चैन से बीता लें
धुएं के छल्ले में
गम को उड़ा दें
शांत तन में
हल-चल मचा दें
चलते-चलते आखरी
दो कस लगा लें
लिबास ओढा हो
सफ़ेद या खाकी का
लब से लगा लें
हिरदय में बसा लें
चाहे निर्बल कर या धोखा दें
कुछ पल तेरे संग बीता लें
चलते-चलते ,खुली आँखों से
बंद आँखों से सौदा कर
शौक तो बुझा लें
आखरी दो कस लगा लें
------आर.वीवेक
विश्वास -अविश्वास
जिस सूरत में दुनिया
लग रही है खुबसूरत
कभी उसका सच
न जान लेना
ठगे रह जावोगे ,
हो जावोगे अकेले
उठती-गिरती नजरो से
आएना तांक लेना
बना नूर में
अक्स को अपना साथी
दिल लगाने की
फिर कभी हिमाकत
न करना
तोहमत न लगाओ
वक्त पे हे साहीब
घर की चार-दिवारी से
कभी बाहर भी झांक लेना
------आर.वीवेक
इ-मेल-वीवेक२१७४@जीमेल.com">-मेल-वीवेक२१७४@जीमेल.com
लग रही है खुबसूरत
कभी उसका सच
न जान लेना
ठगे रह जावोगे ,
हो जावोगे अकेले
उठती-गिरती नजरो से
आएना तांक लेना
बना नूर में
अक्स को अपना साथी
दिल लगाने की
फिर कभी हिमाकत
न करना
तोहमत न लगाओ
वक्त पे हे साहीब
घर की चार-दिवारी से
कभी बाहर भी झांक लेना
------आर.वीवेक
इ-मेल-वीवेक२१७४@जीमेल.com">-मेल-वीवेक२१७४@जीमेल.com
शहर
अजीब है शहर
हैं अजीब इस शहर के लोग
किसी के,जिंदगी की
शाम हो गयी है
पर चंद कदमो पे ही
चल रहा मौज मस्ती का दौर
जिन इमारतो में, जिंदगी गुजरी
न कभी जान पाए ,पड़ोस में रहता है कौन
कंकड़ पत्थर में रहकर
हो गए है कंकड़ पत्थर से लोग
भाग -दौड़ की जिंदगी में
न सुबह को, न ही शाम को है चैन ।
अजीब है शहर
है अजीब इस शहर के लोग
---- आर.वीवेक
-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
हैं अजीब इस शहर के लोग
किसी के,जिंदगी की
शाम हो गयी है
पर चंद कदमो पे ही
चल रहा मौज मस्ती का दौर
जिन इमारतो में, जिंदगी गुजरी
न कभी जान पाए ,पड़ोस में रहता है कौन
कंकड़ पत्थर में रहकर
हो गए है कंकड़ पत्थर से लोग
भाग -दौड़ की जिंदगी में
न सुबह को, न ही शाम को है चैन ।
अजीब है शहर
है अजीब इस शहर के लोग
---- आर.वीवेक
-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
Monday, October 4, 2010
सवागतम
अटकलों पर लग गया विराम
खुबसूरत लग रही शाम
आगाज हो गया ,खेलो के संग्राम का
लग रहा हैं ,भारत की शान में
चार चाँद
कहने वालो ने क्या -क्या नहीं ,कहा
कहना था ,उनका काम
भयभीत हुए बिना ,बढता रहा
जो कारवा
आज सममुख सबके है
विश्व में, भारत का
क्या है मुकाम
जियो उठो बढ़ो जीतो
छू लो गगन
है देश का ये पैगाम
भारत सारा कर रहा
कामनवेल्थ में आने वालो का
तहे-दिल से
स्वागतम स्वागतम स्वागतम
आर.विवेक
ब्लॉगर नाम -सफ़र-विवेक .ब्लागस्पाट.कॉम
इ-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com">-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
खुबसूरत लग रही शाम
आगाज हो गया ,खेलो के संग्राम का
लग रहा हैं ,भारत की शान में
चार चाँद
कहने वालो ने क्या -क्या नहीं ,कहा
कहना था ,उनका काम
भयभीत हुए बिना ,बढता रहा
जो कारवा
आज सममुख सबके है
विश्व में, भारत का
क्या है मुकाम
जियो उठो बढ़ो जीतो
छू लो गगन
है देश का ये पैगाम
भारत सारा कर रहा
कामनवेल्थ में आने वालो का
तहे-दिल से
स्वागतम स्वागतम स्वागतम
आर.विवेक
ब्लॉगर नाम -सफ़र-विवेक .ब्लागस्पाट.कॉम
इ-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com">-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
Thursday, September 30, 2010
हे खुदा
HE KHUDA !
aman-chain ka bayar bahata rahe
aur
ateet na dohrata
to achchha tha.
aaj bhe dikhate hain
ped-paudhe,daman me lage daag ko
bhavanavo ka aag na bhadkata
to achchha tha.
rongate khade ho jate the
chahu aur,sun chitkaar ko
saryu ki aviral dhara me
lahu ka dhababa na dikhata
to achchha tha.
jin galiyi-mohalo me
zindgi gujari
shanti aur sampradayik sauhard se
ashanti aur nafarat me
basar na hota
to achchha tha .
taumr jo the dost
ab na dushaman bante
to achchha tha .
he khuda!
de de sadbudhi,apne bando ko
mandir,masjid,girja,gurudavara, me
sabhee ko ak hee rup dikhe
to achchha hai.
janakarosh par vivek ka
niyantran hota
to achchha tha.
he khuda!
R.VIVEK
E_MAIL-vivek2174@gmail.com>
aman-chain ka bayar bahata rahe
aur
ateet na dohrata
to achchha tha.
aaj bhe dikhate hain
ped-paudhe,daman me lage daag ko
bhavanavo ka aag na bhadkata
to achchha tha.
rongate khade ho jate the
chahu aur,sun chitkaar ko
saryu ki aviral dhara me
lahu ka dhababa na dikhata
to achchha tha.
jin galiyi-mohalo me
zindgi gujari
shanti aur sampradayik sauhard se
ashanti aur nafarat me
basar na hota
to achchha tha .
taumr jo the dost
ab na dushaman bante
to achchha tha .
he khuda!
de de sadbudhi,apne bando ko
mandir,masjid,girja,gurudavara, me
sabhee ko ak hee rup dikhe
to achchha hai.
janakarosh par vivek ka
niyantran hota
to achchha tha.
he khuda!
R.VIVEK
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Monday, September 13, 2010
आज भी नहीं भूल पाए ..................
बीते हुए कल को
जब देखता हूँ
वक्त के आईनों में
कल तक था ,जो खुशनशीब
आज खोया हैं ,और ग़मगीन हैं
अपने- पन में
kyo aisa लगता हैं ,खड़ी दूर कहीं
आवाज दे , रही ho anter -hi-anterman me
वक्त भी धुमिल nअ कर पाया
आभा तेरी
विचरण कर रहा हू main
नियती के बियावान
aur teri yado ke uzalo me.
सहसा ठिठक zआता मैं
देखने को तेरा रुप्वेश
पर कुछ to nahi दीखता
इन आखो के सुने पन se
न जाने क्यों तेरा
इंतजार
आज भी हैं
be-rang zindgi ke kainavas me
तुझसे बिछड़ कर
कोई कैसे जिए
हर क्षन ,जो तुम रहती हो
मेरी सासों में
परमपराइओ की सीमा होगी
हम तुम बंधे हुए हैं कई बंधन में
चाहकर भी ,हम तेरे न हो पाए
पर तेरी ,अनुपम ,अनोखी छवि
सदा प्रज्वलित रहेगी मेरे हिरदय में
बीते हुए कल को
जब देखता हु
वक्त के आईनों में
----आर.वीवेक
इ_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com" href="mailto:_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
जब देखता हूँ
वक्त के आईनों में
कल तक था ,जो खुशनशीब
आज खोया हैं ,और ग़मगीन हैं
अपने- पन में
kyo aisa लगता हैं ,खड़ी दूर कहीं
आवाज दे , रही ho anter -hi-anterman me
वक्त भी धुमिल nअ कर पाया
आभा तेरी
विचरण कर रहा हू main
नियती के बियावान
aur teri yado ke uzalo me.
सहसा ठिठक zआता मैं
देखने को तेरा रुप्वेश
पर कुछ to nahi दीखता
इन आखो के सुने पन se
न जाने क्यों तेरा
इंतजार
आज भी हैं
be-rang zindgi ke kainavas me
तुझसे बिछड़ कर
कोई कैसे जिए
हर क्षन ,जो तुम रहती हो
मेरी सासों में
परमपराइओ की सीमा होगी
हम तुम बंधे हुए हैं कई बंधन में
चाहकर भी ,हम तेरे न हो पाए
पर तेरी ,अनुपम ,अनोखी छवि
सदा प्रज्वलित रहेगी मेरे हिरदय में
बीते हुए कल को
जब देखता हु
वक्त के आईनों में
----आर.वीवेक
इ_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com" href="mailto:_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
Saturday, September 4, 2010
तेरा शर्माना
ढलता हुआ सूरज
शर्माती नारी सा क्यों हैं
घुघट में लिपटने को
इतना बेताब सा क्यों हैं
रौशन है जहाँ तुझसे
तू बे-नाम सा क्यों हैं
उमड़ते ज़ज्बात
समुंदरी ज्वार सा क्यों हैं
ठहर कुछ पल
करू दीदार तेरा
सारा जहाँ हैं तेरा
मेरा यहाँ क्या हैं
ढलता हुआ सूरज
शर्माती नारी सा क्यों हैं
लिखने वाला -आर.विवेक
_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
शर्माती नारी सा क्यों हैं
घुघट में लिपटने को
इतना बेताब सा क्यों हैं
रौशन है जहाँ तुझसे
तू बे-नाम सा क्यों हैं
उमड़ते ज़ज्बात
समुंदरी ज्वार सा क्यों हैं
ठहर कुछ पल
करू दीदार तेरा
सारा जहाँ हैं तेरा
मेरा यहाँ क्या हैं
ढलता हुआ सूरज
शर्माती नारी सा क्यों हैं
लिखने वाला -आर.विवेक
_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
Friday, August 27, 2010
परमाणु हथियार पर बैठा विश्व
प्रभुत्व की लडाई में
कौन किस्से कम है
मूलभूत सुविधाए चाहे कम हो
पर सभी के हाथो में परमाणु बम हैं
मैक्सलो की हैराकी का
अपवाद देख रहे हम हैं
हिब्कुशा को देख
न किसी को कोई गम हैं
चाहे सर से पैर डूबा हो ,क़र्ज़ में
पर नाकों पर राष्ट्र गौरव का
झूठा अहम है
हम ,हम हैं, हम किस्से कम हैं
लिखने वाला -आर.वीवेक
इ_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com" href="mailto:-विवेक२१७४@जीमेल.com
कौन किस्से कम है
मूलभूत सुविधाए चाहे कम हो
पर सभी के हाथो में परमाणु बम हैं
मैक्सलो की हैराकी का
अपवाद देख रहे हम हैं
हिब्कुशा को देख
न किसी को कोई गम हैं
चाहे सर से पैर डूबा हो ,क़र्ज़ में
पर नाकों पर राष्ट्र गौरव का
झूठा अहम है
हम ,हम हैं, हम किस्से कम हैं
लिखने वाला -आर.वीवेक
इ_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com" href="mailto:-विवेक२१७४@जीमेल.com
Tuesday, August 10, 2010
आ आ आजादी
हम यहाँ, वो कहा
आजादी हैं कहा
दरम्या एवरेस्ट ,मरयाना
सा हैं जहा
समता या समानता हैं कहा
फिर भी
क्या हम आज़ाद हैं
सोचने दो,रूककर जरा यहाँ
हैं आज़ाद तो किसके लिए
भ्रष्टाचार ,हिसा ,आतंक
आनैतिक कृत्य ,महगाई
को देने के लिए पनाह
हम यहाँ ,वो कहा
आजादी हैं कहा
kitney मानते हैं
आजादी का ज़शन
त्योहारों की तरह
to कितने आन्भिघ हैं
आजादी से
हर दिन हैं जीते
हर दिन की तरह
हम yaha वो कहा
आजादी हैं कहा
सारा जहा लड़ता हैं
जिसके लिए
वो लोग थे कल भी जहा
आज भी हैं वहा
कल भी रहेगे वहा
tab तक न बदलेगी तस्वीर
जब तक न भरेगा
इंसानी कब्रगह
हम यहाँ ,वो कहा
आजादी हैं कहा
लिखने वाला- आर. विवेक
इ_मेल.कॉम-विवेक२१७४@जीमेल.com
आजादी हैं कहा
दरम्या एवरेस्ट ,मरयाना
सा हैं जहा
समता या समानता हैं कहा
फिर भी
क्या हम आज़ाद हैं
सोचने दो,रूककर जरा यहाँ
हैं आज़ाद तो किसके लिए
भ्रष्टाचार ,हिसा ,आतंक
आनैतिक कृत्य ,महगाई
को देने के लिए पनाह
हम यहाँ ,वो कहा
आजादी हैं कहा
kitney मानते हैं
आजादी का ज़शन
त्योहारों की तरह
to कितने आन्भिघ हैं
आजादी से
हर दिन हैं जीते
हर दिन की तरह
हम yaha वो कहा
आजादी हैं कहा
सारा जहा लड़ता हैं
जिसके लिए
वो लोग थे कल भी जहा
आज भी हैं वहा
कल भी रहेगे वहा
tab तक न बदलेगी तस्वीर
जब तक न भरेगा
इंसानी कब्रगह
हम यहाँ ,वो कहा
आजादी हैं कहा
लिखने वाला- आर. विवेक
इ_मेल.कॉम-विवेक२१७४@जीमेल.com
Thursday, August 5, 2010
ललक
परिस्थितियों से भागो मत
लड़ना सीखो
तनहाई में भी
हसना सीखो
खुद ही खुद से
बाते करना सीखो
इतिहास से कुछ सीखो
तो भूगोल भी पढना सीखो
आग से जलना सीखो
सूरज से तपना सीखो
चाँद से भी कुछ लेना सीखो
उम्र की सीमा न हो
हर उम्र में कुछ न कुछ सीखो
चीटी से कुछ सीखो
तो हवा -पानी से भी कुछ सीखो
फले वृक्ष की डाली से भी कुछ लेना सीखो
पर्वत को खड़ा ही न देखो तुम
उनसे भी कुछ लेना सीखो
कुछ पाना सीखो तो कुछ खोना सीखो
मंदिर,मस्जिद , गुरुद्वारा से भी
कुछ लेना सीखो
शीतल जल ही न पियो घड़े का
कुम्हार की चकिया का
हाल भी पूछो तुम
सौ साल कायर बनकर
जीने से अचछा
एक दिन शेर बनकर
जी लो तुम
हर दिन हर पल हर क्षण
ऐसा जियो ,बस जीना है
तुमको आज का दिन
लिखने वाला -आर.विवेक
इ_मेल -विवेक२१७४@जीमेल.com
लड़ना सीखो
तनहाई में भी
हसना सीखो
खुद ही खुद से
बाते करना सीखो
इतिहास से कुछ सीखो
तो भूगोल भी पढना सीखो
आग से जलना सीखो
सूरज से तपना सीखो
चाँद से भी कुछ लेना सीखो
उम्र की सीमा न हो
हर उम्र में कुछ न कुछ सीखो
चीटी से कुछ सीखो
तो हवा -पानी से भी कुछ सीखो
फले वृक्ष की डाली से भी कुछ लेना सीखो
पर्वत को खड़ा ही न देखो तुम
उनसे भी कुछ लेना सीखो
कुछ पाना सीखो तो कुछ खोना सीखो
मंदिर,मस्जिद , गुरुद्वारा से भी
कुछ लेना सीखो
शीतल जल ही न पियो घड़े का
कुम्हार की चकिया का
हाल भी पूछो तुम
सौ साल कायर बनकर
जीने से अचछा
एक दिन शेर बनकर
जी लो तुम
हर दिन हर पल हर क्षण
ऐसा जियो ,बस जीना है
तुमको आज का दिन
लिखने वाला -आर.विवेक
इ_मेल -विवेक२१७४@जीमेल.com
Thursday, July 1, 2010
शिछा की सजी दुकान
क्या चाहा था
क्या पाया तुझसे
आज का युवा पढ़ लिख के
bhee दर -दर भटके
प्रोफेशनल डिग्री हाथ में रख के
घर की साख कर्ज में डूबे
सवाभीमान आड़े हाथ आये
कोई काम न कर सके ,गिर कर ke
sichha vid ,fir bhee sapne bache
अपनी झोली भर-भर के
क्या चाहा ,क्या पाया तुझसे
शिछा के दीपक से ,चाहा
दूर करू अंधियारा मन से
त्याग समरपढ़ सब कुछ किया
दूर रहा जीवन भर घर से
अशिछित की नज़रो में हैं
ये कागज
पढ़े लिखे कहते हैं
fएल भरी पड़ी हैं , डिग्री से
ऐसी शिछा का क्या ,मतलब
जीवन यापन का साधन
न मिल पाए जिससे
क्या चाहा ,क्या पाया तुझसे
शिछा ज्ञान दिया
तर्क करने की छमता दिया
दिया भले बुरे की पहचान
पर , गिरा दिया गुर्न्वता अपनी
आधुनिकता के स्याह समंदर में
डेढ़ हाथ की डिग्री लटकी
खुटी के समान्तर में
मकखी उन पर सैर करती
दीमक की उपस्तिथ में
चूहा ललयिएत रहता
डिग्री में छुपे ,ज्ञान को पाने में
क्या चाहा ,क्या पाया तुझसे
आज का युवा पढ़ लिख के
likhne वाला -आर.वीवेक
-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
क्या पाया तुझसे
आज का युवा पढ़ लिख के
bhee दर -दर भटके
प्रोफेशनल डिग्री हाथ में रख के
घर की साख कर्ज में डूबे
सवाभीमान आड़े हाथ आये
कोई काम न कर सके ,गिर कर ke
sichha vid ,fir bhee sapne bache
अपनी झोली भर-भर के
क्या चाहा ,क्या पाया तुझसे
शिछा के दीपक से ,चाहा
दूर करू अंधियारा मन से
त्याग समरपढ़ सब कुछ किया
दूर रहा जीवन भर घर से
अशिछित की नज़रो में हैं
ये कागज
पढ़े लिखे कहते हैं
fएल भरी पड़ी हैं , डिग्री से
ऐसी शिछा का क्या ,मतलब
जीवन यापन का साधन
न मिल पाए जिससे
क्या चाहा ,क्या पाया तुझसे
शिछा ज्ञान दिया
तर्क करने की छमता दिया
दिया भले बुरे की पहचान
पर , गिरा दिया गुर्न्वता अपनी
आधुनिकता के स्याह समंदर में
डेढ़ हाथ की डिग्री लटकी
खुटी के समान्तर में
मकखी उन पर सैर करती
दीमक की उपस्तिथ में
चूहा ललयिएत रहता
डिग्री में छुपे ,ज्ञान को पाने में
क्या चाहा ,क्या पाया तुझसे
आज का युवा पढ़ लिख के
likhne वाला -आर.वीवेक
-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
Saturday, June 12, 2010
NYAY YA MAZAK(BHOPAL GAS KAND)
जो चल रहा है
चलने दो
दुल्मुली व्यवस्था को
पलने दो
ये बदनसीबी है
इस देश की न्याय प्रणाली की
जो पली बढ़ी है
काली छाया में
तो इसे वंश वाद का
रूप दिखाने दो
यहाँ का कानून अँधा है
इसे अभी तक जकड़ा
गुलामी का फन्दा है
न्याय व्यवस्था में भी
चलता गोरख धंधा है
सब कुछ अन्दर ही अन्दर
आहिस्ता-आहिस्ता चलने दो
भेद कभी न खुलने दो
अहसासो को धूमिल
पड़ने तक
एक पीढ़ी से कई पीढ़ी
गुजरने तक
तारीख पे तारीख
पड़ने दो
इन्सान हूँ eस देश की संतान हूँ
बहुत कुछ सीखा है
इसी देश की सभ्यता और संस्कारो से
सहो न अन्याय और लड़ो burayee के खिलाफ
enihi बातो का anusardh कर
अस्तित्व मिट जाने तक
कोर्ट कचेहरी का ckakakar lagane दो
वैसे यहाँ कानून किसके लिए है
और न्याय यहाँ किसे मिलता है
यह बात आपको मालूम होगा
पर मुझे अज्ञानी बनकर समझने दो
धाराओं में उलझने दो
लिखा गया -वीवेक द्वारा
-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
चलने दो
दुल्मुली व्यवस्था को
पलने दो
ये बदनसीबी है
इस देश की न्याय प्रणाली की
जो पली बढ़ी है
काली छाया में
तो इसे वंश वाद का
रूप दिखाने दो
यहाँ का कानून अँधा है
इसे अभी तक जकड़ा
गुलामी का फन्दा है
न्याय व्यवस्था में भी
चलता गोरख धंधा है
सब कुछ अन्दर ही अन्दर
आहिस्ता-आहिस्ता चलने दो
भेद कभी न खुलने दो
अहसासो को धूमिल
पड़ने तक
एक पीढ़ी से कई पीढ़ी
गुजरने तक
तारीख पे तारीख
पड़ने दो
इन्सान हूँ eस देश की संतान हूँ
बहुत कुछ सीखा है
इसी देश की सभ्यता और संस्कारो से
सहो न अन्याय और लड़ो burayee के खिलाफ
enihi बातो का anusardh कर
अस्तित्व मिट जाने तक
कोर्ट कचेहरी का ckakakar lagane दो
वैसे यहाँ कानून किसके लिए है
और न्याय यहाँ किसे मिलता है
यह बात आपको मालूम होगा
पर मुझे अज्ञानी बनकर समझने दो
धाराओं में उलझने दो
लिखा गया -वीवेक द्वारा
-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
Sunday, June 6, 2010
यादो में
ख़त न चिट्ठी न पाती हम देगे
बस तेरी यादो में दस्तक देगे
बड़ा मतल्वी है जो ये ज़माना
इसका है न कोई ठिकाना
झूठा मनगढ़त बुन देगा ताना बाना
यादो में आकर फिर ,
आके चले जाना
बंद आखो में रहेगा तेरा मेरा ठिकाना
जब बीते पल की
खुलेगी एक -एक कर लड़िया
कभी हसना तो कभी रोना
कुछ पल के लिए
जग लगेगा सूना
उस पल कुछ न होगा
बस यादो के संग पड़ेगा जीना
ख़त न चिट्ठी न पाती हम देगे
बस तेरी यादो में हम दस्तक देगे
लिखने वाला -आर.विवेक
इ_मेल -विवेक२१७४@जीमेल.com
बस तेरी यादो में दस्तक देगे
बड़ा मतल्वी है जो ये ज़माना
इसका है न कोई ठिकाना
झूठा मनगढ़त बुन देगा ताना बाना
यादो में आकर फिर ,
आके चले जाना
बंद आखो में रहेगा तेरा मेरा ठिकाना
जब बीते पल की
खुलेगी एक -एक कर लड़िया
कभी हसना तो कभी रोना
कुछ पल के लिए
जग लगेगा सूना
उस पल कुछ न होगा
बस यादो के संग पड़ेगा जीना
ख़त न चिट्ठी न पाती हम देगे
बस तेरी यादो में हम दस्तक देगे
लिखने वाला -आर.विवेक
इ_मेल -विवेक२१७४@जीमेल.com
Saturday, May 29, 2010
बन्दूको के साये में
आखिर कब तक रहेगा
कायम जंगल राज
क्या इसी तरह बिछती रहेगी
लाशो पे लाश
कब तक मूकदर्शक बनकर
देखते रहेगे हम
और खबरों में पढते रहेगे
इन घटनावो के पीछे
छुपा है क्या राज ?
देश की बागडोर है जिनके हाथ
वो हो गए है बे-आवाज
सततालोलुप सोच रहे
किसी तरह बची रहे अपनी सत्ता
और चलता रहे अपना राज
कोई कहता ये लोग (नक्सली)
देश की आंतरिक सुराछा के लिए बड़ा खतरा है
कोई कहता ,देश की आंतरिक सुराछा देखना नहीं मेरा काम
मेरे सर पे है और कई कामकाज
आखिर कब , सत्तालोलुपो
तेरी मरी आत्मा जागेगी
आयेगी तुममे थोड़ी लाज
पुरको की क़ुरबानी की
कुछ तो रख लो लाज
खुद से ही प्रश्न पूछो
क्या देश बड़ा या ताज
क्या खोखले देश का कभी
हो पायेगा विकास
आवाज भी निकले तो
सिर्फ न निंदा करो
न दो आदेश सिर्फ जाच
कुछ काम करो ,जो
देश की जनता को आये कुछ रास
आखिर कब तक रहेगा
कायम जंगल राज
लिखने वाला आर .वीवेक
-मेल-विवेक२१७@जीमेल.com
कायम जंगल राज
क्या इसी तरह बिछती रहेगी
लाशो पे लाश
कब तक मूकदर्शक बनकर
देखते रहेगे हम
और खबरों में पढते रहेगे
इन घटनावो के पीछे
छुपा है क्या राज ?
देश की बागडोर है जिनके हाथ
वो हो गए है बे-आवाज
सततालोलुप सोच रहे
किसी तरह बची रहे अपनी सत्ता
और चलता रहे अपना राज
कोई कहता ये लोग (नक्सली)
देश की आंतरिक सुराछा के लिए बड़ा खतरा है
कोई कहता ,देश की आंतरिक सुराछा देखना नहीं मेरा काम
मेरे सर पे है और कई कामकाज
आखिर कब , सत्तालोलुपो
तेरी मरी आत्मा जागेगी
आयेगी तुममे थोड़ी लाज
पुरको की क़ुरबानी की
कुछ तो रख लो लाज
खुद से ही प्रश्न पूछो
क्या देश बड़ा या ताज
क्या खोखले देश का कभी
हो पायेगा विकास
आवाज भी निकले तो
सिर्फ न निंदा करो
न दो आदेश सिर्फ जाच
कुछ काम करो ,जो
देश की जनता को आये कुछ रास
आखिर कब तक रहेगा
कायम जंगल राज
लिखने वाला आर .वीवेक
-मेल-विवेक२१७@जीमेल.com
Saturday, May 22, 2010
BAALSHRAM
बचपन तो निर्दोष हैं
तो बचचो का क्या दोष हैं
इनके भविष्य की नैय्या
किस ओर हैं
इनके माता पिता को नहीं
इनका कोई होश हैं
सब अपने ही में मदहोश हैं
बचपन तो निर्दोष हैं
जिन हाथो में होना हो
कलम और किताब को
उन हाथो में परिवार
चलाने का बोझ हैं
प्रति-दिन न जाने
कितनो का शोषण होता हैं
फिर भी शासन -प्रशासन को
इनका नहीं कोई होश हैं
बचपन तो निर्दोष हैं
तो बचचो का क्या दोष हैं
मासूमअपने जन्म पर रोते हैं
बदहाली में अपना भविष्य खोते हैं
दहसत के साये में सोते हैं
कई अमानाविये घटनाये उनके
संग होते हैं
इस बात का ,न किसी को कोई अफ़सोस है
न कोई कदम बद रहा ,इनकी और है
बचपन तो निर्दोष हैं
तो बच्चो का क्या दोष हैं
लिखने वाला -आर.विवेक
इ-मेल -विवेक२१७४@जीमेल.com
तो बचचो का क्या दोष हैं
इनके भविष्य की नैय्या
किस ओर हैं
इनके माता पिता को नहीं
इनका कोई होश हैं
सब अपने ही में मदहोश हैं
बचपन तो निर्दोष हैं
जिन हाथो में होना हो
कलम और किताब को
उन हाथो में परिवार
चलाने का बोझ हैं
प्रति-दिन न जाने
कितनो का शोषण होता हैं
फिर भी शासन -प्रशासन को
इनका नहीं कोई होश हैं
बचपन तो निर्दोष हैं
तो बचचो का क्या दोष हैं
मासूमअपने जन्म पर रोते हैं
बदहाली में अपना भविष्य खोते हैं
दहसत के साये में सोते हैं
कई अमानाविये घटनाये उनके
संग होते हैं
इस बात का ,न किसी को कोई अफ़सोस है
न कोई कदम बद रहा ,इनकी और है
बचपन तो निर्दोष हैं
तो बच्चो का क्या दोष हैं
लिखने वाला -आर.विवेक
इ-मेल -विवेक२१७४@जीमेल.com
Sunday, April 18, 2010
MADHUSHALA
कहते हैं लोग करती सेहत ख़राब है
फिर भी पीते शराब है
पल ख़ुशी का हो या गम का
बनी रहती हमराज है
ये जों शराब है ,ये जो शराब है
चदता तभी शबाब है
ज़ब होता कोई दबाब है
पूछे कोई एक सवाल
निकलता कई जबाब है
फिर भी सबसे अच्छी शराब है
दूर करती ,चेहरे पर लगा
जो नकाब है ,ये जो शराब है
इसकी तारीफ लाज़बाब है
कहते है लोग करती सेहत खराब है
फिर भी पीते शराब है
खुद अदावत करता
शरीर अपने आप से
कुछ करो अचछा
फिर भी ख़राब हो जाता ज़नाब से
पहले पीते रहे,शौक -शौक में
ज़ब देखा करीब आ गए ,मौत के
तब भी न हुए ,होश में
एक-एक करके न जाने
कितनी पी ली
दोस्त-दोस्त में
कहते है लोग करती सेहत ख़राब है
फिर भी पीते शराब है
लिखने वाला -आर.विवेक
इ-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com" href="mailto:-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
फिर भी पीते शराब है
पल ख़ुशी का हो या गम का
बनी रहती हमराज है
ये जों शराब है ,ये जो शराब है
चदता तभी शबाब है
ज़ब होता कोई दबाब है
पूछे कोई एक सवाल
निकलता कई जबाब है
फिर भी सबसे अच्छी शराब है
दूर करती ,चेहरे पर लगा
जो नकाब है ,ये जो शराब है
इसकी तारीफ लाज़बाब है
कहते है लोग करती सेहत खराब है
फिर भी पीते शराब है
खुद अदावत करता
शरीर अपने आप से
कुछ करो अचछा
फिर भी ख़राब हो जाता ज़नाब से
पहले पीते रहे,शौक -शौक में
ज़ब देखा करीब आ गए ,मौत के
तब भी न हुए ,होश में
एक-एक करके न जाने
कितनी पी ली
दोस्त-दोस्त में
कहते है लोग करती सेहत ख़राब है
फिर भी पीते शराब है
लिखने वाला -आर.विवेक
इ-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com" href="mailto:-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
Thursday, April 1, 2010
ज़न्म होगा की नहीं (भूर्ण हत्या )
ऐ इंसा ! तुने इक जीवन को
पनपने न दिया
इस सुन्दर ज़हा को
देखने से पहले ही, उसे महरूम किया
आपसे प्यारे तो जानवर है
जो अपनी ममता को, अपने जिगर से
कभी , अलग होने न दिया
ऐ इंसा ! तुने इक जीवन को
पनपने न दिया
वो हो सकती थी ,माया ,चावला ,नूयी
श्रुति या टरेसा का रूप
जिनेह आपने पनपने न दिया
उनकी अनुपम किलकारियों से
न जाने कितने घरो को महरूम किया
ऐ इंसा ! तुने इक जीवन को
पनपने न दिया
आप तो (डॉक्टर) भगवान् का दूसरा रूप हो
चंद पैसो के लिए
इक शक्ति को, इस ज़हा में आने न दिया
कितनी माओ की ममता को
उनके साथ पलने न दिया
ऐ इंसा ! तुने इक इंसा होकर
एक जीवन को
पनपने न दिया
लिखने वाला -आर.विवेक
इ-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.कॉम
पनपने न दिया
इस सुन्दर ज़हा को
देखने से पहले ही, उसे महरूम किया
आपसे प्यारे तो जानवर है
जो अपनी ममता को, अपने जिगर से
कभी , अलग होने न दिया
ऐ इंसा ! तुने इक जीवन को
पनपने न दिया
वो हो सकती थी ,माया ,चावला ,नूयी
श्रुति या टरेसा का रूप
जिनेह आपने पनपने न दिया
उनकी अनुपम किलकारियों से
न जाने कितने घरो को महरूम किया
ऐ इंसा ! तुने इक जीवन को
पनपने न दिया
आप तो (डॉक्टर) भगवान् का दूसरा रूप हो
चंद पैसो के लिए
इक शक्ति को, इस ज़हा में आने न दिया
कितनी माओ की ममता को
उनके साथ पलने न दिया
ऐ इंसा ! तुने इक इंसा होकर
एक जीवन को
पनपने न दिया
लिखने वाला -आर.विवेक
इ-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.कॉम
Saturday, March 6, 2010
बाबागिरी और समाज
इंसा हो इंसा बनकर जी लो तुम
धर्म की आड़ में, रहकर
किसी की आस्था,अस्मिता,और भावना
से न खेलो तुम
धर्म धारण करने के चीज़ है
लिबास बदलकर,बहरूपिया रूप धरकर
numaesh न लगाओ तुम
जनता जनार्दन भीड़ का, हिस्सा बनकर
चलने की आदी है
इनकी मासूमियत, और अघय्नता का
फायदा न उठाओ तुम
गर लोगो की आस्था,न होती धर्म में
लाखो करोडो के महलो, गाडियो और काफिलो में न चलते तुम
किसी की जिंदगी में, समां रौशन कर सकते नहीं
तो किसे के घर का चिराग न बुझाओ तुम
इंसा हो इंसा बनकर जी लो तुम
लिखने वाला-आर.विवेक
इ-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.कॉम
धर्म की आड़ में, रहकर
किसी की आस्था,अस्मिता,और भावना
से न खेलो तुम
धर्म धारण करने के चीज़ है
लिबास बदलकर,बहरूपिया रूप धरकर
numaesh न लगाओ तुम
जनता जनार्दन भीड़ का, हिस्सा बनकर
चलने की आदी है
इनकी मासूमियत, और अघय्नता का
फायदा न उठाओ तुम
गर लोगो की आस्था,न होती धर्म में
लाखो करोडो के महलो, गाडियो और काफिलो में न चलते तुम
किसी की जिंदगी में, समां रौशन कर सकते नहीं
तो किसे के घर का चिराग न बुझाओ तुम
इंसा हो इंसा बनकर जी लो तुम
लिखने वाला-आर.विवेक
इ-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.कॉम
Sunday, February 14, 2010
काज़ल
झुकी नजर का, झुकी नजर पर वार हुआ.
कम्बखत काजल बीच में दीवार हुआ.
ऐसा पहली बार हुआ, ऐसा पहली बार हुआ.
काजल ने जलकर, किस्मत क्या बनाई है,
महबूब की आँखों में जगह पाई है.
मेरे दिल में काजल के लिए खार हुआ,
न जाने कब से,वह मेरी महबूबा का यार हुआ.
जब से पलकों पर सजाया है उसको,
तब से उनकी नजरो में उन्ही का,
ये आशिक बेकार हुआ
हिरनी सी नजर,कातिल सी अदा पर,
ये आशिक दिल बीमार हुआ.
दवा भी लिया, दुआ भी किया
फिर भी , ये दिल-इ-रोग ला-इलाज हुआ.
झुकी नजर का, झुकी नजर पर वार हुआ.
कम्बखत काजल बीच में देवार हुआ.
ऐसा पहली बार हुआ,ऐसा पहली बार हुआ.
लिखने वाला-आर.विवेक
इ-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.कॉम
कम्बखत काजल बीच में दीवार हुआ.
ऐसा पहली बार हुआ, ऐसा पहली बार हुआ.
काजल ने जलकर, किस्मत क्या बनाई है,
महबूब की आँखों में जगह पाई है.
मेरे दिल में काजल के लिए खार हुआ,
न जाने कब से,वह मेरी महबूबा का यार हुआ.
जब से पलकों पर सजाया है उसको,
तब से उनकी नजरो में उन्ही का,
ये आशिक बेकार हुआ
हिरनी सी नजर,कातिल सी अदा पर,
ये आशिक दिल बीमार हुआ.
दवा भी लिया, दुआ भी किया
फिर भी , ये दिल-इ-रोग ला-इलाज हुआ.
झुकी नजर का, झुकी नजर पर वार हुआ.
कम्बखत काजल बीच में देवार हुआ.
ऐसा पहली बार हुआ,ऐसा पहली बार हुआ.
लिखने वाला-आर.विवेक
इ-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.कॉम
कोरी कल्पना
ज़न्नत से जमी पर उतरते
एक अफसरा देखा है
जुल्फ घने बादल है, उसके
तो घटाओ को जुल्फों में
सिमटते देखा है
चंचलता मांगे,इजाजत उनसे
की समंदर में,लहरों को उठते देखा है
मदमस्त चालो की है, वो मल्लिका
तो दरिया को हर मोड़ पर
बलखाते हुआ देखा
लव हैं की गुलाबी रंग समेटे हुआ
हर सुबह गुलाब को खिलते देखा है
ज़न्नत से जमी पर उतरते
एक अफसरा देखा है
लिबास है, की सप्तरंगी रंग समेटे हुआ
हर सुबह, सूरज के किरने पर्वत पर पड़ते देखा है
फूलो से भी नाजुक है, तन उनके
हवाओ से ये सन्देश भेजा है
बच-बचकर कितना भी निकले
इन निगाहों से.
झुके नजरो से, मैंने हर बार उनको देखा है
जब -जब सर से उडे चुनर उनकी
ऐसा लगे, जैसे बदलो को अटखेलिया करते हुआ देखा है
है नको पे नाथ,और कजरारे नयन,
हर रात चाँद तारो, को चमकते हुआ देखा है
लिखने वाला -आर. विवेक
इ-मेल-विवेक2174 @जीमेल.कॉम
एक अफसरा देखा है
जुल्फ घने बादल है, उसके
तो घटाओ को जुल्फों में
सिमटते देखा है
चंचलता मांगे,इजाजत उनसे
की समंदर में,लहरों को उठते देखा है
मदमस्त चालो की है, वो मल्लिका
तो दरिया को हर मोड़ पर
बलखाते हुआ देखा
लव हैं की गुलाबी रंग समेटे हुआ
हर सुबह गुलाब को खिलते देखा है
ज़न्नत से जमी पर उतरते
एक अफसरा देखा है
लिबास है, की सप्तरंगी रंग समेटे हुआ
हर सुबह, सूरज के किरने पर्वत पर पड़ते देखा है
फूलो से भी नाजुक है, तन उनके
हवाओ से ये सन्देश भेजा है
बच-बचकर कितना भी निकले
इन निगाहों से.
झुके नजरो से, मैंने हर बार उनको देखा है
जब -जब सर से उडे चुनर उनकी
ऐसा लगे, जैसे बदलो को अटखेलिया करते हुआ देखा है
है नको पे नाथ,और कजरारे नयन,
हर रात चाँद तारो, को चमकते हुआ देखा है
लिखने वाला -आर. विवेक
इ-मेल-विवेक2174 @जीमेल.कॉम
Thursday, February 11, 2010
EK GUlAB
courtsy-wallpaper.com
surkh lalima lapeta gulab
tan najuk hai,par
apne hirday me lapeta hai
jajbat be-hisaab
kato me pala aur bada par
muskarana na choda ak bhe baar
teri bheni bheni khusbu se
gulsan hi nahi,
ensa bhe hua guljaar
gar sharmate lajate koi
baya na kar sake
apne jajbate pyar ko.
tu palbhar me,
bahut kutch baya kar de
ya jod de ya tod de,
do dilo ka taar
written by-R.Vivek
E-mail-vivek2174@gmail.com
surkh lalima lapeta gulab
tan najuk hai,par
apne hirday me lapeta hai
jajbat be-hisaab
kato me pala aur bada par
muskarana na choda ak bhe baar
teri bheni bheni khusbu se
gulsan hi nahi,
ensa bhe hua guljaar
gar sharmate lajate koi
baya na kar sake
apne jajbate pyar ko.
tu palbhar me,
bahut kutch baya kar de
ya jod de ya tod de,
do dilo ka taar
written by-R.Vivek
E-mail-vivek2174@gmail.com
Tuesday, February 9, 2010
बे -जुबान दिल
बेवजह लफ्ज कुछ
कहते ही नहीं.
दिल-इ -जज्बात यु
निकलते ही नहीं.
आप हो इतने हसी,
ये दिलनशी, ये महजबी
देखू कितनी बार भी
पर दिल है,की सुकू मिलता ही नहीं.
न देखू आपको,तो वीरान सा लगता है,
ये आसमा और ये ज़मी.
बेवजह लफ्ज कुछ
कहते ही नहीं
चाँद को उसकी सुन्दरता,
किसी ने बताई ही नहीं.
देखू चाँद को, तो ऐसा लगे
आप की सुन्दरता का,
कंही कोई हिस्सा तो नहीं.
कई निसा गुजारी है,देखकर चाँद को
कंही आप से कोई,गुफ्तगू किया तो नहीं.
बे_वजह लफ्ज कुछ
कहते ही नहीं.
दिल-इ - जज्बात यु,
निकलते ही नहीं
कहते ही नहीं.
दिल-इ -जज्बात यु
निकलते ही नहीं.
आप हो इतने हसी,
ये दिलनशी, ये महजबी
देखू कितनी बार भी
पर दिल है,की सुकू मिलता ही नहीं.
न देखू आपको,तो वीरान सा लगता है,
ये आसमा और ये ज़मी.
बेवजह लफ्ज कुछ
कहते ही नहीं
चाँद को उसकी सुन्दरता,
किसी ने बताई ही नहीं.
देखू चाँद को, तो ऐसा लगे
आप की सुन्दरता का,
कंही कोई हिस्सा तो नहीं.
कई निसा गुजारी है,देखकर चाँद को
कंही आप से कोई,गुफ्तगू किया तो नहीं.
बे_वजह लफ्ज कुछ
कहते ही नहीं.
दिल-इ - जज्बात यु,
निकलते ही नहीं
Written-R.Vivek.E-mail-vivek2174@gmail.com
Monday, January 25, 2010
GARTENTRA DIVAS
Ateet ke bharat,aur vartmaan ke bharat
ke darmayan, gartentra divas ke sath(60) saal
kya khoya, kya paya?
kya huaa, bharat ka haal?
vishv ki chauthi aarthik arthvyvastha bani
suchana kranti,.pramanu parichan me kiya kamaal
kaye aur karname kiye
vishv biradari me jamayee apni dhaak
teen yud lare,kaye trasdi jhali
khud ke ghar me huye,kaye gaddar
hamne khoya kaye apne ko
dhanya hai vo maye, jo janme aise laal
tinke-tinke jorkar,samvidhan banaya
jinmey shamil kiye 395 anuchhed
12 anusuchiya aur 25 bhag
samvidhan ki prastavana ko
samvidhan ki kunji kaha
desh ki akhandta,basundharm kutumkam
banaye rahne ke liye, kaye upay
par bharat vaha na pahucha
jaha dekha tha,ateet me sapna
lootghasot, bhshtrachar, har tantra
me pair faila liya hai apna
ense nijat kaise mile
enke liye ,jimmedar kauin hai kitna
ateet ke bharat,aur vartmaan ke bharat
ke darmayan,gartantra divas ke sath saal
written by-R.VIVEK
E-mail-vivek2174@gmail.com
\
ke darmayan, gartentra divas ke sath(60) saal
kya khoya, kya paya?
kya huaa, bharat ka haal?
vishv ki chauthi aarthik arthvyvastha bani
suchana kranti,.pramanu parichan me kiya kamaal
kaye aur karname kiye
vishv biradari me jamayee apni dhaak
teen yud lare,kaye trasdi jhali
khud ke ghar me huye,kaye gaddar
hamne khoya kaye apne ko
dhanya hai vo maye, jo janme aise laal
tinke-tinke jorkar,samvidhan banaya
jinmey shamil kiye 395 anuchhed
12 anusuchiya aur 25 bhag
samvidhan ki prastavana ko
samvidhan ki kunji kaha
desh ki akhandta,basundharm kutumkam
banaye rahne ke liye, kaye upay
par bharat vaha na pahucha
jaha dekha tha,ateet me sapna
lootghasot, bhshtrachar, har tantra
me pair faila liya hai apna
ense nijat kaise mile
enke liye ,jimmedar kauin hai kitna
ateet ke bharat,aur vartmaan ke bharat
ke darmayan,gartantra divas ke sath saal
written by-R.VIVEK
E-mail-vivek2174@gmail.com
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Thursday, January 7, 2010
Zustazu-A-Manjil
आँखों में चमक
दिल में हैं,हसरत
की अभी अस्मा छूना हैं बाकी
चलना है बहुत दूर
तो किसका इंतज़ार है बाकी
निकले थे घर से
तो एक मेरा खुदा
और दूजा मेरा वजूद ही था काफी
औए यहाँ कोई नहीं ,किसी का है साथी
बस तकदीरे इबारत, हर किसी को
अपनी तदवीर से है लिखनी
आँखों में चमक
दिल में है हसरत
की अभी अस्मा छूना हैं बाकी
गिरते भी रहे, संभलते भी रहे ,
उठ-उठकर चलते भी रहे
वक़्त बे-वक़्त यह कहते भी रहे
की चलना है अभी बहुत दूर
तो किसका इंतजार है बाकी
अभी युवा हुए, पल दो पल ही हुए है
अभी तो दमदख दिखाना है बाकी
गर रहो में मिल जाये,गिर या समंदर भी
तो उन्हे कदमो तले लाना है बाकी
जुस्तजू है हर किसी को,
किसी न किसी की
मकसद असली मुकाम पर पहुचना है बाकी
चलना है बहुत दूर
तो किसका इंतजार है बाकी ||
Written by-R.Vivek
E-mail-Vivek2174@gmail.com
दिल में हैं,हसरत
की अभी अस्मा छूना हैं बाकी
चलना है बहुत दूर
तो किसका इंतज़ार है बाकी
निकले थे घर से
तो एक मेरा खुदा
और दूजा मेरा वजूद ही था काफी
औए यहाँ कोई नहीं ,किसी का है साथी
बस तकदीरे इबारत, हर किसी को
अपनी तदवीर से है लिखनी
आँखों में चमक
दिल में है हसरत
की अभी अस्मा छूना हैं बाकी
गिरते भी रहे, संभलते भी रहे ,
उठ-उठकर चलते भी रहे
वक़्त बे-वक़्त यह कहते भी रहे
की चलना है अभी बहुत दूर
तो किसका इंतजार है बाकी
अभी युवा हुए, पल दो पल ही हुए है
अभी तो दमदख दिखाना है बाकी
गर रहो में मिल जाये,गिर या समंदर भी
तो उन्हे कदमो तले लाना है बाकी
जुस्तजू है हर किसी को,
किसी न किसी की
मकसद असली मुकाम पर पहुचना है बाकी
चलना है बहुत दूर
तो किसका इंतजार है बाकी ||
Written by-R.Vivek
E-mail-Vivek2174@gmail.com
Monday, January 4, 2010
AKANCHHA
Bahey kholkar
ankho me aasa liye
dekh raha hu,main gagan.
har naye din ka,
besabri se
kar raha hu,ahavaan.
khusiya,prem sauhard ka,phool khiley.
har kayari har chman.
hava bahe,chano aman ki
jaise baheti hai,
ye alahre pavan
man titli bankar urta rahe.
kabhi ye chaman,
to kabhi vo chaman.
vasundhara hari bhari bani rahe,
nila bana rahe ye gagan
gar gila shikava
kabhi dastak de
to dur ho aiyse
jaise har chan
badalney ka hai chalan.
samirdhi, sampanta ,barti rahe
dino din unati ke sikhar par charta rahe
aur hota rahe,
mera bharat mahan
mera bharat mahan..
Written by - R.Vivek
E-mail-vivek2174@gmail.com
ankho me aasa liye
dekh raha hu,main gagan.
har naye din ka,
besabri se
kar raha hu,ahavaan.
khusiya,prem sauhard ka,phool khiley.
har kayari har chman.
hava bahe,chano aman ki
jaise baheti hai,
ye alahre pavan
man titli bankar urta rahe.
kabhi ye chaman,
to kabhi vo chaman.
vasundhara hari bhari bani rahe,
nila bana rahe ye gagan
gar gila shikava
kabhi dastak de
to dur ho aiyse
jaise har chan
badalney ka hai chalan.
samirdhi, sampanta ,barti rahe
dino din unati ke sikhar par charta rahe
aur hota rahe,
mera bharat mahan
mera bharat mahan..
Written by - R.Vivek
E-mail-vivek2174@gmail.com
NAYA SAAL
Kal kya hoga?
naya saal hoga.
na jane, fir
kya-kya hoga?
vahi chand tarey
rat din vahi hoga.
jasn bhe manega
khushiya bhe hogi
sandeso ka aana
jana bhe hoga
naye yojnaye
naya rup legi
kaye kutch kadam
chal-kar dam tore degi
kaye zindgi ko naya
more degi.
kal kya hoga
naya saal hoga.
khati-mithi
kutch yadey bhe hogi.
naya mileyga koi
to kisi se bichurna bhe hoga.
umido ka chaman
guljar kahi
to kahi viran bhe hoga.
akhir, zindgi ki hakikat ko
samajhana hi hoga.
kal kya hoga?
naya saal hoga.
Written by-R.Vivek
E-mail-vivek2174@gmail.com
naya saal hoga.
na jane, fir
kya-kya hoga?
vahi chand tarey
rat din vahi hoga.
jasn bhe manega
khushiya bhe hogi
sandeso ka aana
jana bhe hoga
naye yojnaye
naya rup legi
kaye kutch kadam
chal-kar dam tore degi
kaye zindgi ko naya
more degi.
kal kya hoga
naya saal hoga.
khati-mithi
kutch yadey bhe hogi.
naya mileyga koi
to kisi se bichurna bhe hoga.
umido ka chaman
guljar kahi
to kahi viran bhe hoga.
akhir, zindgi ki hakikat ko
samajhana hi hoga.
kal kya hoga?
naya saal hoga.
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