ऐ इंसा ! तुने इक जीवन को
पनपने न दिया
इस सुन्दर ज़हा को
देखने से पहले ही, उसे महरूम किया
आपसे प्यारे तो जानवर है
जो अपनी ममता को, अपने जिगर से
कभी , अलग होने न दिया
ऐ इंसा ! तुने इक जीवन को
पनपने न दिया
वो हो सकती थी ,माया ,चावला ,नूयी
श्रुति या टरेसा का रूप
जिनेह आपने पनपने न दिया
उनकी अनुपम किलकारियों से
न जाने कितने घरो को महरूम किया
ऐ इंसा ! तुने इक जीवन को
पनपने न दिया
आप तो (डॉक्टर) भगवान् का दूसरा रूप हो
चंद पैसो के लिए
इक शक्ति को, इस ज़हा में आने न दिया
कितनी माओ की ममता को
उनके साथ पलने न दिया
ऐ इंसा ! तुने इक इंसा होकर
एक जीवन को
पनपने न दिया
लिखने वाला -आर.विवेक
इ-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.कॉम
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aap ko padta hu to lagta hai ke aap dil se likhte hai
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