Thursday, September 30, 2010

हे खुदा

HE KHUDA !
aman-chain ka bayar bahata rahe
aur
ateet na dohrata
to achchha tha.
aaj bhe dikhate hain
ped-paudhe,daman me lage daag ko
bhavanavo ka aag na bhadkata
to achchha tha.
rongate khade ho jate the
chahu aur,sun chitkaar ko
saryu ki aviral dhara me
lahu ka dhababa na dikhata
to achchha tha.
jin galiyi-mohalo me
zindgi gujari
shanti aur sampradayik sauhard se
ashanti aur nafarat me
basar na hota
to achchha tha .
taumr jo the dost
ab na dushaman bante
to achchha tha .
he khuda!
de de sadbudhi,apne bando ko
mandir,masjid,girja,gurudavara, me
sabhee ko ak hee rup dikhe
to achchha hai.
janakarosh par vivek ka
niyantran hota
to achchha tha.
he khuda!

R.VIVEK
E_MAIL-vivek2174@gmail.com>

Monday, September 13, 2010

आज भी नहीं भूल पाए ..................

बीते हुए कल को
जब देखता हूँ
वक्त के आईनों में
कल तक था ,जो खुशनशीब
आज खोया हैं ,और ग़मगीन हैं
अपने- पन में

kyo aisa लगता हैं ,खड़ी दूर कहीं
आवाज दे , रही ho anter -hi-anterman me
वक्त भी धुमिल nकर पाया
आभा तेरी
विचरण कर रहा हू main
नियती के बियावान
aur teri yado ke uzalo me.
सहसा ठिठक zआता मैं
देखने को तेरा रुप्वेश
पर कुछ to nahi दीखता
इन आखो के सुने पन se
न जाने क्यों तेरा
इंतजार
आज भी हैं
be-rang zindgi ke kainavas me

तुझसे बिछड़ कर
कोई कैसे जिए
हर क्षन ,जो तुम रहती हो
मेरी सासों में

परमपराइओ की सीमा होगी
हम तुम बंधे हुए हैं कई बंधन में
चाहकर भी ,हम तेरे न हो पाए
पर तेरी ,अनुपम ,अनोखी छवि
सदा प्रज्वलित रहेगी मेरे हिरदय में
बीते हुए कल को
जब देखता हु
वक्त के आईनों में

----आर.वीवेक
_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com" href="mailto:_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com






Saturday, September 4, 2010

तेरा शर्माना

ढलता हुआ सूरज
शर्माती नारी सा क्यों हैं
घुघट में लिपटने को
इतना बेताब सा क्यों हैं
रौशन है जहाँ तुझसे
तू बे-नाम सा क्यों हैं
उमड़ते ज़ज्बात
समुंदरी ज्वार सा क्यों हैं
ठहर कुछ पल
करू दीदार तेरा
सारा जहाँ हैं तेरा
मेरा यहाँ क्या हैं
ढलता हुआ सूरज
शर्माती नारी सा क्यों हैं
लिखने वाला -आर.विवेक
_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com