बीते हुए कल को
जब देखता हूँ
वक्त के आईनों में
कल तक था ,जो खुशनशीब
आज खोया हैं ,और ग़मगीन हैं
अपने- पन में
kyo aisa लगता हैं ,खड़ी दूर कहीं
आवाज दे , रही ho anter -hi-anterman me
वक्त भी धुमिल nअ कर पाया
आभा तेरी
विचरण कर रहा हू main
नियती के बियावान
aur teri yado ke uzalo me.
सहसा ठिठक zआता मैं
देखने को तेरा रुप्वेश
पर कुछ to nahi दीखता
इन आखो के सुने पन se
न जाने क्यों तेरा
इंतजार
आज भी हैं
be-rang zindgi ke kainavas me
तुझसे बिछड़ कर
कोई कैसे जिए
हर क्षन ,जो तुम रहती हो
मेरी सासों में
परमपराइओ की सीमा होगी
हम तुम बंधे हुए हैं कई बंधन में
चाहकर भी ,हम तेरे न हो पाए
पर तेरी ,अनुपम ,अनोखी छवि
सदा प्रज्वलित रहेगी मेरे हिरदय में
बीते हुए कल को
जब देखता हु
वक्त के आईनों में
----आर.वीवेक
इ_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com" href="mailto:_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
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