Sunday, February 14, 2010

काज़ल

झुकी नजर का, झुकी नजर पर वार हुआ.
कम्बखत काजल बीच में दीवार हुआ.
ऐसा पहली बार हुआ, ऐसा पहली बार हुआ.
काजल ने जलकर, किस्मत क्या बनाई है,
महबूब की आँखों में जगह पाई है.
मेरे दिल में काजल के लिए खार हुआ,
न जाने कब से,वह मेरी महबूबा का यार हुआ.
जब से पलकों पर सजाया है उसको,
तब से उनकी नजरो में उन्ही का,
ये आशिक बेकार हुआ
हिरनी सी नजर,कातिल सी अदा पर,
ये आशिक दिल बीमार हुआ.
दवा भी लिया, दुआ भी किया
फिर भी , ये दिल-इ-रोग ला-इलाज हुआ.
झुकी नजर का, झुकी नजर पर वार हुआ.
कम्बखत काजल बीच में देवार हुआ.
ऐसा पहली बार हुआ,ऐसा पहली बार हुआ.
लिखने वाला-आर.विवेक
इ-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.कॉम

कोरी कल्पना

ज़न्नत से जमी पर उतरते
एक अफसरा देखा है
जुल्फ घने बादल है, उसके
तो घटाओ को जुल्फों में
सिमटते देखा है
चंचलता मांगे,इजाजत उनसे
की समंदर में,लहरों को उठते देखा है
मदमस्त चालो की है, वो मल्लिका
तो दरिया को हर मोड़ पर
बलखाते हुआ देखा
लव हैं की गुलाबी रंग समेटे हुआ
हर सुबह गुलाब को खिलते देखा है
ज़न्नत से जमी पर उतरते
एक अफसरा देखा है
लिबास है, की सप्तरंगी रंग समेटे हुआ
हर सुबह, सूरज के किरने पर्वत पर पड़ते देखा है
फूलो से भी नाजुक है, तन उनके
हवाओ से ये सन्देश भेजा है
बच-बचकर कितना भी निकले
इन निगाहों से.
झुके नजरो से, मैंने हर बार उनको देखा है
जब -जब सर से उडे चुनर उनकी
ऐसा लगे, जैसे बदलो को अटखेलिया करते हुआ देखा है
है नको पे नाथ,और कजरारे नयन,
हर रात चाँद तारो, को चमकते हुआ देखा है
लिखने वाला -आर. विवेक
इ-मेल-विवेक2174 @जीमेल.कॉम

Thursday, February 11, 2010

EK GUlAB

courtsy-wallpaper.com

surkh lalima lapeta gulab
tan najuk hai,par
apne hirday me lapeta hai
jajbat be-hisaab
kato me pala aur bada par
muskarana na choda ak bhe baar
teri bheni bheni khusbu se
gulsan hi nahi,
ensa bhe hua guljaar
gar sharmate lajate koi
baya na kar sake
apne jajbate pyar ko.
tu palbhar me,
bahut kutch baya kar de
ya jod de ya tod de,
do dilo ka taar
written by-R.Vivek
E-mail-vivek2174@gmail.com

Tuesday, February 9, 2010

बे -जुबान दिल

बेवजह लफ्ज कुछ
कहते ही नहीं.
दिल-इ -जज्बात यु
निकलते ही नहीं.
आप हो इतने हसी,
ये दिलनशी, ये महजबी
देखू कितनी बार भी
पर दिल है,की सुकू मिलता ही नहीं.
न देखू आपको,तो वीरान सा लगता है,
ये आसमा और ये ज़मी.
बेवजह लफ्ज कुछ
कहते ही नहीं
चाँद को उसकी सुन्दरता,
किसी ने बताई ही नहीं.
देखू चाँद को, तो ऐसा लगे
आप की सुन्दरता का,
कंही कोई हिस्सा तो नहीं.
कई निसा गुजारी है,देखकर चाँद को
कंही आप से कोई,गुफ्तगू किया तो नहीं.
बे_वजह लफ्ज कुछ
कहते ही नहीं.
दिल-इ - जज्बात यु,
निकलते ही नहीं

Written-R.Vivek.E-mail-vivek2174@gmail.com

This month(feb) is special for lovers.........