इंसा हो इंसा बनकर जी लो तुम
धर्म की आड़ में, रहकर
किसी की आस्था,अस्मिता,और भावना
से न खेलो तुम
धर्म धारण करने के चीज़ है
लिबास बदलकर,बहरूपिया रूप धरकर
numaesh न लगाओ तुम
जनता जनार्दन भीड़ का, हिस्सा बनकर
चलने की आदी है
इनकी मासूमियत, और अघय्नता का
फायदा न उठाओ तुम
गर लोगो की आस्था,न होती धर्म में
लाखो करोडो के महलो, गाडियो और काफिलो में न चलते तुम
किसी की जिंदगी में, समां रौशन कर सकते नहीं
तो किसे के घर का चिराग न बुझाओ तुम
इंसा हो इंसा बनकर जी लो तुम
लिखने वाला-आर.विवेक
इ-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.कॉम
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