Tuesday, November 9, 2010

महफ़िल-ऐ-शायरी

१) पहले मैं उनकी नजरो में कुछ था
अब कुछ भी नहीं
दरमया फासला बस इतना हुआ
पहले मैं कुछ था ,अब कुछ भी नहीं

२)हर एक ज़ख़्म मंजर-ऐ-दास्ता हैं
यह मत पूछ,दिल -ऐ-दर्द का ज़ख़्म कौन सा है

३) दिल से दिल का रिश्ता ,खौफ से मिटता नहीं
चाहे जितना ,दिल की दहलीज पे लगा लो ,तलवार का पहरा

४)मर्ज ये नहीं की मरीज है वो
मर्ज ये है की रकीब है वो
हसरत भी उसकी किसी से कम नहीं
पर हाथो में इमानदारी की जंजीर है जो

५)जानकर भी लोग अनजान बनते है
अपने ही बच्चो में हो,गर लड़की
तो उसकी जान पर बनते है
उन्हें खौफ भी नहीं इतना
रब के घर उनका अंजाम क्या होगा

६)क्यों कोई तेरे पास आएगा
सोच क्या तेरे साथ जायेगा
es मतलब परस्त दुनिया में
कोई तो होगा सच्चा
उसी के संग रह ,वाही तेरे साथ जायेगा

--आर.वीवेक
-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com

No comments:

Post a Comment