कब कहा क्या हो जाय
न तुझको पता ,न मुझको पता
जो दे बता ,वह रब हो जाय
फिर भी,सपना लिए आखो में बढ़ते है लोग
कब कहा ये सच हो जाय
ओठो पे हसी या आखे नाम हो जाय
हो उदास ,तो देख लो जहा
कही कुछ ऐसा दिखे,
जो जिन्दगी जीने का मकसद बन जाय
कही तेरे ,मेरे मन की कुछ न हो
सब रब के मन की हो जाय
सफरे जिन्दगी में,सभाल सभाल के रखो कदम
न जाने कौन सा कदम आखिरी हो जाय
कब कहा क्या हो जाय
____आर.विवेक
_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
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