Friday, December 31, 2010

अंतस विचरण

अंतस में अकुलाहट
न मन की कोई अभिलाषा
शून्य व्यापत हिरदय की गहराई में
गूढ़ हुई जीवन की परिभाषा
धवनि निनाद की नगरी में
मन अक्सर है मंडराता
काले बदल के पीछे , क्या है छुपा
कभी -कभी जानने की होती जिज्ञासा
गुजरू जब भी ,उस पथ से
कर्ण-प्रिय संगीत ,मन में रच बस जाता
तीव्र किरण पुंज की रोशनी में
भटक गया हूँ ,सोचता हूँ
फिर कब घर लौटना होगा दोबारा

----आर.विवेक

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