Sunday, October 10, 2010

शहर

अजीब है शहर
हैं अजीब इस शहर के लोग
किसी के,जिंदगी की
शाम हो गयी है
पर चंद कदमो पे ही
चल रहा मौज मस्ती का दौर
जिन इमारतो में, जिंदगी गुजरी
न कभी जान पाए ,पड़ोस में रहता है कौन
कंकड़ पत्थर में रहकर
हो गए है कंकड़ पत्थर से लोग
भाग -दौड़ की जिंदगी में
न सुबह को, न ही शाम को है चैन ।
अजीब है शहर
है अजीब इस शहर के लोग
---- आर.वीवेक
-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com

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