अंतस में अकुलाहट
न मन की कोई अभिलाषा
शून्य व्यापत हिरदय की गहराई में
गूढ़ हुई जीवन की परिभाषा
धवनि निनाद की नगरी में
मन अक्सर है मंडराता
काले बदल के पीछे , क्या है छुपा
कभी -कभी जानने की होती जिज्ञासा
गुजरू जब भी ,उस पथ से
कर्ण-प्रिय संगीत ,मन में रच बस जाता
तीव्र किरण पुंज की रोशनी में
भटक गया हूँ ,सोचता हूँ
फिर कब घर लौटना होगा दोबारा
----आर.विवेक
Friday, December 31, 2010
अनाथ
खुश हूँ कि बसंत -दर-बसंत
ओझल हुआ इन आँखों से
सड़क जिंदगी बनी
आसमां बना छत
लिपटा रहा तन,वक्त के चादर से
परिस्थिति क्या रही होगी ?
जब उठा होगा,हाथ मासूम के सर से
न कोई नाम,न कोई मजहब
बस जुड़ा था,एक शब्द "अनाथ"
मासूम के दमन से
कभी -कभी संवेदना फूटती ,इस जग से
पर अगले ही पल,रोष परिलक्षित होता
इन्ही लोगो के मन से
क्यों नहीं जोड़ा खुदा ,इस मासूम का
नाता किसी घर से
समय के पालने में खेलकर बड़ा हुआ
तो सोचता हूँ
क्या होता है,नया साल और जन्मदिन
क्यों मानते हैं,लोग इतनी ख़ुशी
ख्याल आता है खुद के बारे में
तो मन मिसोस कर कह देता है
खुदा ने ख़ुशी कि डोर काट दी ,
जनम ही से
---आर.विवेक
ओझल हुआ इन आँखों से
सड़क जिंदगी बनी
आसमां बना छत
लिपटा रहा तन,वक्त के चादर से
परिस्थिति क्या रही होगी ?
जब उठा होगा,हाथ मासूम के सर से
न कोई नाम,न कोई मजहब
बस जुड़ा था,एक शब्द "अनाथ"
मासूम के दमन से
कभी -कभी संवेदना फूटती ,इस जग से
पर अगले ही पल,रोष परिलक्षित होता
इन्ही लोगो के मन से
क्यों नहीं जोड़ा खुदा ,इस मासूम का
नाता किसी घर से
समय के पालने में खेलकर बड़ा हुआ
तो सोचता हूँ
क्या होता है,नया साल और जन्मदिन
क्यों मानते हैं,लोग इतनी ख़ुशी
ख्याल आता है खुद के बारे में
तो मन मिसोस कर कह देता है
खुदा ने ख़ुशी कि डोर काट दी ,
जनम ही से
---आर.विवेक
Saturday, December 11, 2010
घरौंदा
मिटटी की सोंधली खुशबू
नन्हे हाथो का कमाल
त्यौहार की ख़ुशी
उमड़ा मन मस्तिष्क
में विचार
बड़ो ने अपने लिए
जो बना रखा है आशियाना
त्यौहार आने पर ,लिपा-पोती
कर सजा रहे है
हमारे साजो-सामान घर के बाहर
धुप -शीत khअ रहे है
अब इन घरो में ,कितना दिनों तक
रहेगा हम सब का ठिकाना
बच्चो की टोली से कहने लगे
देखो दोस्तों हम-सब को ये बच्चे
समझते है
हमारे मन की गहराई ko
क्यों नहीं समझते है
हम सब बनायेगे ,अपने घर के पास
घर का छोटा सा ही प्रतिरूप
प्रकृति ने हम सब को
संशाधन दिए है खूब
सभी बच्चो ने बना डाला अपना आशियाना
यह देख घर के लोग ,होने लगे निहाल
कहने लगे ,देखो बच्चा हो रहा है बड़ा
मट्टी बटोरकर ,बना डाला है घरौंदा
कद्र करो इनके जज्बातों का
नहीं तो घर में ही उठ जाएगी आंधी
बच्चो ने दिखा दिया है ,ये हो सकते है बागी
-----आर.विवेक
ब्लॉगर नाम -सफ़र-विवेक.ब्लागस्पाट.कॉम
इ_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com">_मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
नन्हे हाथो का कमाल
त्यौहार की ख़ुशी
उमड़ा मन मस्तिष्क
में विचार
बड़ो ने अपने लिए
जो बना रखा है आशियाना
त्यौहार आने पर ,लिपा-पोती
कर सजा रहे है
हमारे साजो-सामान घर के बाहर
धुप -शीत khअ रहे है
अब इन घरो में ,कितना दिनों तक
रहेगा हम सब का ठिकाना
बच्चो की टोली से कहने लगे
देखो दोस्तों हम-सब को ये बच्चे
समझते है
हमारे मन की गहराई ko
क्यों नहीं समझते है
हम सब बनायेगे ,अपने घर के पास
घर का छोटा सा ही प्रतिरूप
प्रकृति ने हम सब को
संशाधन दिए है खूब
सभी बच्चो ने बना डाला अपना आशियाना
यह देख घर के लोग ,होने लगे निहाल
कहने लगे ,देखो बच्चा हो रहा है बड़ा
मट्टी बटोरकर ,बना डाला है घरौंदा
कद्र करो इनके जज्बातों का
नहीं तो घर में ही उठ जाएगी आंधी
बच्चो ने दिखा दिया है ,ये हो सकते है बागी
-----आर.विवेक
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Friday, December 10, 2010
भ्रष्टाचार की ओट
भ्रष्ट्राचार इतना बलवान हो गया
हर तंत्र में यह भगवन हो गया
इसके प्रति श्रद्धा रखना अनिवार्य हो गया
राम संग जैसे प्रिय भक्त हनुमान हो गया
रिश्वत की आड़ में यह जवान हो गया
धन की लालसा में ,इन्सान हैवान हो गया
रिश्वत से हर काम का अनुबंध हो गया
यह देख सचाई सतयुग के दामन में सो गया
एक दिन भ्रमण करते हुए ,परभू का नारायण से भेट हो गया
पूछा प्रभु ,ऋषि -मुनियों के देश में यह क्या हो रहा
बोले प्रभु ,देखो नारायण ,कलयुग का प्रकोप छा रहा
ऐसा तो युग युगांतर से होता आ रहा
नारायण बोले ,प्रभु मै समझ गया
अनुमति दे अब जाऊ चला ,देश तेरा हो भला
-आर.विवेक
ब्लॉगर नाम -सफ़र-विवेक.ब्लागस्पाट.कॉम
इ-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com" href="mailto:-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
हर तंत्र में यह भगवन हो गया
इसके प्रति श्रद्धा रखना अनिवार्य हो गया
राम संग जैसे प्रिय भक्त हनुमान हो गया
रिश्वत की आड़ में यह जवान हो गया
धन की लालसा में ,इन्सान हैवान हो गया
रिश्वत से हर काम का अनुबंध हो गया
यह देख सचाई सतयुग के दामन में सो गया
एक दिन भ्रमण करते हुए ,परभू का नारायण से भेट हो गया
पूछा प्रभु ,ऋषि -मुनियों के देश में यह क्या हो रहा
बोले प्रभु ,देखो नारायण ,कलयुग का प्रकोप छा रहा
ऐसा तो युग युगांतर से होता आ रहा
नारायण बोले ,प्रभु मै समझ गया
अनुमति दे अब जाऊ चला ,देश तेरा हो भला
-आर.विवेक
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Tuesday, December 7, 2010
मौकापरस्त
आज सुबह सड़क पर
शराब की बोतल मिली
कहने लगी,मयखाने की
शोभा बढाती थी ,मै कभी
एक मयकद को सुकून -इ-मंजर
पहुचाया अभी अभी
मै खाली हुई , तो मुझको फेक दिया
अब मै हु यहाँ पड़ी
लाखो चाहने वाले थे
जब तक थी मै भरी
लव से लगता था कोई
तो किसी के हिरदय को
ठंडक पहुचती थी मै कभी
आज मै भटक रही हु
कभी इस गली ,तो कभी उस गली
आज तेरे कदमो तले ,आकर हु पड़ी
आज सुबह सड़क
पर शराब की बोतल मिली
- --आर.विवेक
ब्लॉगर नाम -सफ़र-विवेक.ब्लागस्पाट.कॉम
-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
शराब की बोतल मिली
कहने लगी,मयखाने की
शोभा बढाती थी ,मै कभी
एक मयकद को सुकून -इ-मंजर
पहुचाया अभी अभी
मै खाली हुई , तो मुझको फेक दिया
अब मै हु यहाँ पड़ी
लाखो चाहने वाले थे
जब तक थी मै भरी
लव से लगता था कोई
तो किसी के हिरदय को
ठंडक पहुचती थी मै कभी
आज मै भटक रही हु
कभी इस गली ,तो कभी उस गली
आज तेरे कदमो तले ,आकर हु पड़ी
आज सुबह सड़क
पर शराब की बोतल मिली
- --आर.विवेक
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