Sunday, July 31, 2011

देश के लुटेरे

आतंकी को दावत दे रहे
नेतागण अपनी राजनीति चमकाने में
घडियाली आंसू बहा रहे
घाव पर मरहम लगाने में
आतंकी ग़र पकड़ा गया
तो रख रहे
राजनितिक सुरक्षा कवच के घेरे में

सफेदी हैं धारण किये
पर मलिनता भरी पड़ी है इनकी रगों में
देश की जनता को भरमाये हुए हैं
उजुल-फिजूल की बयान बाजी में
क्यों न हम सब इन नेतावो की
गिनती करे देश के ठग और लुटेरो में

-आर.विवेक

दादी का मर्म

हे ललना कब करबा शादी

पढाई-लिखाई कै चक्कर मा

तोहार उमरिया बीत गयी आधी

फलनिया कै देखो ,खेलावत बाय परनाती जो है हमरी संग साथी

जेका देखो यही कहत बांटे,दादी भैया से पूछो

कब चली बाराती

ललना तोहरे खातीर

लड़की चंद्रमुखी देखे बांटी

हे ललना अब बोलो कब करबा शादी

डीएम -कलक्टर बनते रहना

पर अब सुन हम का कहत बांटी

दो -चार पल कै बस इय जग मा

हम MEHMAAN बांटी

काश इह जग से जाने से पहले

हमंहू परनाती खेलावाय का पाती

हे ललना बतावो कब करबा शादी




-आर.विवेक

Monday, May 16, 2011

सपनों के पार

कुछ पाना है ,तो कुछ खोना होगा
त्याग का बीज,समर्पण की सतह पर बोना होगा
रवि संग नित्य निकलना होगा
प्रेरणा तेरा गहना होगा
दोपहर की तपिश सहना होगा
लू के थपेड़ो से ,लड़ना होगा
कहीं न कहीं से ,कभी न कभी
जीवन आकाश में ,काला बादल घुमडेगा
तेज आंधी संग शीतल वर्षा कर जायेगा
सख्त भूमि से बाहर फिर सुकोमल
कली प्रस्फुटित होते हुए दिखलायेगा
ममता के आंचल में ,
वाही एक दिन विशाल वृक्ष बन जायेगा
अपने ही फरामोश कर देगे
सारे गिले -शिकवे
जब उनका हिरदय शीतलता की छाँव में
ठंडक पायेगा
खामोशी से सारा जीवन ,एक पल में
खुशियों से सिमट जायेगा
ये दिन जरुर आयेगा ,ये दिन जरुर आयेगा .............

आर.विवेक





















































Wednesday, April 6, 2011

तेरे बगैर ...............


तेरी क्या बिसात है ?

मेरी क्या पहचान ?

बगैर तेरे वजूद के

मैं हूँ ,शोकेस में लगे

पुतले समान

मेरा मन कोरा है

कोरा है मेरा बदन

तुम गोदते हो ,गोदना

मेरे जिस्म पर

और बनाते हो, कई निशान

आह निकलती है

हर अक्षरों पर

पर तुम चलने में

रहते हो मगन

सोचते होंगे ,की मैं निर्जीव हूँ

और हूँ ,बे-प्राण

पर न भूलना हमने बढ़ाये हैं

कितनो के ज्ञान

कोई कहता है ,मुझे सरस्वती

तो किसी की नजरो में

मैं हूँ ,लक्ष्मी के समान

पर हम दोनों का

एक -दूसरे के बगैर

न होगा ,कंही गुजरा

चाहे दें ,दें

जिंदगी के कितने भी इम्तिहान

हकीकत ये है

की ,हम दोनों बदल लें

कितने रूप भी

पर तुमने एक लेखनी के रूप में

मैंने एक पन्ने के रूप में

बनायीं हैं अपनी पहिचान


--आर.विवेक

Monday, March 7, 2011

विरह की अगिन


सुबह कह रही है ,शाम से
मेरे जाने के बाद
आ जाना आराम से
दिनभर सूरज जलता है
चाँद की याद में
जब मिलने जाता ,सूरज चाँद से
चाँद बेवफा कहकर
निकल आती है रात में
सुबह कह रही है शाम से
सूरज सुन रहा ,होकर हैरान से
क्या गुस्ताखियाँ हुईं ?
हमने फासले बढा लिए
अपने आप से
फिर भी रह रहे हैं ,एक आकाश में
सुबह कह रही है ,शाम से
(सूरज कह रहा है ) इतेफाकन
कहीं मुलाकात हुईं ,चाँद से
तो कहेगे ,शान से निकलती हो
तारो के बीच ,रात में
कभी वक्त निकाल कर
अकेले में मिल लिया करो
अपने पुराने मेहमान से
सुबह कह रही है ,शाम से
-आर.विवेक

Saturday, January 1, 2011

नया साल और फिर एक उम्मीद


उम्मीद कुछ करने का
कुछ बनने का
आस्था के संग जीने का
धैर्य के आंचल में रहने का
अंतहीन सिलसिला
jaise सूरज के निकलने का
मौसम के बदलने का
बरखा होने का
पतझड़ के बाद शाख पर
नये पत्तो के निकलने का
उम्मीद जिन्दगी के साथ
जिन्दगी भर जीने का
भवंर के साथ लड़कर
साहिल तक पहुचने का
गम के काँटों को
फूलो में बदलने का
पर्वत की चोटी पर
ओंस के चमकने का
सुबह -सुबह किरणों के संग
शिखरों पर टहलने का
दर्पण की चमक को
हीरे की चमक में बदलने का
उम्मीद कुछ करने का
कुछ बनने का
आस्था के संग जीने का
--आर.विवेक