कहते हैं लोग करती सेहत ख़राब है
फिर भी पीते शराब है
पल ख़ुशी का हो या गम का
बनी रहती हमराज है
ये जों शराब है ,ये जो शराब है
चदता तभी शबाब है
ज़ब होता कोई दबाब है
पूछे कोई एक सवाल
निकलता कई जबाब है
फिर भी सबसे अच्छी शराब है
दूर करती ,चेहरे पर लगा
जो नकाब है ,ये जो शराब है
इसकी तारीफ लाज़बाब है
कहते है लोग करती सेहत खराब है
फिर भी पीते शराब है
खुद अदावत करता
शरीर अपने आप से
कुछ करो अचछा
फिर भी ख़राब हो जाता ज़नाब से
पहले पीते रहे,शौक -शौक में
ज़ब देखा करीब आ गए ,मौत के
तब भी न हुए ,होश में
एक-एक करके न जाने
कितनी पी ली
दोस्त-दोस्त में
कहते है लोग करती सेहत ख़राब है
फिर भी पीते शराब है
लिखने वाला -आर.विवेक
इ-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com" href="mailto:-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.com
Sunday, April 18, 2010
Thursday, April 1, 2010
ज़न्म होगा की नहीं (भूर्ण हत्या )
ऐ इंसा ! तुने इक जीवन को
पनपने न दिया
इस सुन्दर ज़हा को
देखने से पहले ही, उसे महरूम किया
आपसे प्यारे तो जानवर है
जो अपनी ममता को, अपने जिगर से
कभी , अलग होने न दिया
ऐ इंसा ! तुने इक जीवन को
पनपने न दिया
वो हो सकती थी ,माया ,चावला ,नूयी
श्रुति या टरेसा का रूप
जिनेह आपने पनपने न दिया
उनकी अनुपम किलकारियों से
न जाने कितने घरो को महरूम किया
ऐ इंसा ! तुने इक जीवन को
पनपने न दिया
आप तो (डॉक्टर) भगवान् का दूसरा रूप हो
चंद पैसो के लिए
इक शक्ति को, इस ज़हा में आने न दिया
कितनी माओ की ममता को
उनके साथ पलने न दिया
ऐ इंसा ! तुने इक इंसा होकर
एक जीवन को
पनपने न दिया
लिखने वाला -आर.विवेक
इ-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.कॉम
पनपने न दिया
इस सुन्दर ज़हा को
देखने से पहले ही, उसे महरूम किया
आपसे प्यारे तो जानवर है
जो अपनी ममता को, अपने जिगर से
कभी , अलग होने न दिया
ऐ इंसा ! तुने इक जीवन को
पनपने न दिया
वो हो सकती थी ,माया ,चावला ,नूयी
श्रुति या टरेसा का रूप
जिनेह आपने पनपने न दिया
उनकी अनुपम किलकारियों से
न जाने कितने घरो को महरूम किया
ऐ इंसा ! तुने इक जीवन को
पनपने न दिया
आप तो (डॉक्टर) भगवान् का दूसरा रूप हो
चंद पैसो के लिए
इक शक्ति को, इस ज़हा में आने न दिया
कितनी माओ की ममता को
उनके साथ पलने न दिया
ऐ इंसा ! तुने इक इंसा होकर
एक जीवन को
पनपने न दिया
लिखने वाला -आर.विवेक
इ-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.कॉम
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