कहते सुना एक दिन चाँद को,
लोग अक्सर उसे याद करते है,
देखकर अपने चाँद को
मैं (चाँद)नुरेय्जाहा करती हु,
फिर भी रात मे निकलती हु
मैं भी किसी के लिये तड़पती हु,
और चुप-चुप कर मिलती हु
कभी मैं आधा तो
कभी पूरा निकलती हु.
main प्यार की तरह
धीरे-धीरे बढती हु
मुझमे सर्मो हया है
मैं सारे जहा से डरती हु
esliye मनचले बदलो के
साये मे छुप -छुपकर मिलती हु
लिखने वाला-आर.विवेक
इ-मेल-विवेक२१७४@जीमेल.कॉम
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
this is very assume
ReplyDelete