खुद से पूछता हु
अजनबी शहर में
एक पहचान ढूंढ़ता हु.
चलता हु, तो साथ
चलता है एक साया
साथ चलने का राज पूछता हु.
मैं कौन हू , मैं क्या हु
खुद से पूछता हु
हो जाये अँधेरा
तो उजाला ढूंढ़ता हु.
भटक जाये रहे
तो पथरो से पूछता हु
राहे न आये, समझ मे
तो सहर का नक्शा देखता हु.
गम हो तो, क्यों
रहे हो जाती है, लम्बी
खुशियों मे मदमस्त
चाल चलता हु
मै कौन हु, मैं क्या हु
खुद से पूछता हु||
written by R.Vivek
E-mail-vivek2174@gmail.com
No comments:
Post a Comment