Tuesday, March 6, 2012

बुरा न मानो होली है




रंग ,गुलाल,मतवाली चाल

फागुन का महीना

देवर -भाभी का प्यार

बुढ़वन के ओठो पर है हँसी

और अतीत की याद

हाथ में है बच्चो के पिचकारी

और है लीपा-पोता गाल

घर की रसोएया,आज है खूब मालो-माल

रसभरी गोझिया और पकोड़ी का साथ

चुपके से गुलगुला ,पुडी से कर रही है बात

हमको कौनो नहीं लगा रहा है हाथ

कंहू देशी ठर्रा,तो कंहू विदेशी वाइन

है जावानन के हाथ

सब मिलकर दे रहे ,यही सौगात

ई मदमस्त जावानन की टोली है

मौसम की रंगोली है

भीगी आज किसी की काया और चोली है

भइया-भौजी बुरा न मानो होली है

बुरा न मानो होली है ............................

_आर.विवेक

Monday, February 13, 2012

दबा-दबा ही सही



मन की तरंगे उठ-उठ कर

गिर जाती हैं

बैचेनियों के दामन में जाकर

छुप सी जाती हैं

हिलोरे भर -भर कर हिरदय

तरंगो को जुबा के करीब लाती है

रेत को कर स्पर्श

हिरदय की धरातल में लौट जाती है

रात में रागिनी

फिर भी इठलाती है

सुबह रवि की आगोश में आकर

सब कुछ भूल जाती है

फिर भी ढलती हुए शाम

नज़र कुछ खास आती है

इतना अज़ीज़ है कोई की

इंतजार में उसके उम्र दर उम्र बीत जाती है


-आर.विवेक

Monday, January 2, 2012

नया साल फिर एक नया संकल्प

सजधजकर श्रंगारकर नूतन वर्ष आ गया द्वार पर
प्रेमकर अलिगंनकर ,हर्षित हो ,नूतन वर्ष का सत्कार कर
प्रण,संकल्प,एतबारकर,जग के रचनाकार पर

कर्मशील,पथिक बन ,पथ की पहचान कर
अनवरत असक्त रह ,प्रतिकूलता के भी , राह पर
जिंदादिल बनकर ,हर परिसिथिति को अंगीकार कर
क्या है अपना , क्या है पराया ,इस पर न कभी एतबार कर
यहाँ सब कुछ है टिका ,परिवर्तान्शिलता के आधार पर
सजधजकर , श्रंगारकर ,नूतन वर्ष आ गया द्वार पर \\
--आर.विवेक

नया साल



हर दिन हो नया ,हर दिन हो शुभ
खुशिया आये सब की जिंदिगी में
लेकर कई रूप
कई अवसर मिले ,जब चमको तुम
जग रूपी आकाश में
तेरा अक्स दिखे ,हर प्रकाश में
हर माँ -बाप यही चाहे
तुझ सा ही तारा पले
हर माँ -बाप की कोख में //
---आर .विवेक